युवा पीढ़ी भेड़ चाल से बचे
आज जहां हर क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा है वहीं भारत जैसे विकासशील देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। कमी है तो सिर्फ उचित मार्गदर्शन की। प्रत्येक माता-पिता की यही इच्छा होती है कि उनके बच्चे जीवन में अच्छे कार्य करें और जल्दी ही अपनी आजीविका कमाने के काबिल हो जायें, परन्तु इस शुभ लक्ष्य को प्राप्त करने में कई बाधायें आती हैं। पहली बाधा तो छात्र-छात्राओं के सामने विषय चुनाव और शैक्षणिक संस्थान की आती है। देखने में आता है कि अधिकांश छात्र अपने सहपाठियों की देखा-देखी विषय और संस्थान का चुनाव कर बैठते हैं। बाद में उन्हें अपने किए पर पछतावा होता है क्योंकि उस विषय और संस्थान में उसका मन नहीं रम पाता।
यह समस्या भारत ही नहीं बल्कि विश्व के बहुत सारे देशों में है। अच्छा करियर एक व्यक्ति, परिवार, समाज और देश के भविष्य का प्रतिबिम्ब है। युवाओं के स्वर्णिम करियर से ही समाज और देश आर्थिक विकास कर सकता है। अतः एक देश की उन्नति इस बात पर निर्भर करती है कि उसकी युवा पीढ़ी किस दिशा की तरफ जा रही है। उसकी शिक्षा में गुणवत्ता का भाव है भी कि नहीं। प्रत्येक युवा को अपने करियर का चुनाव करने की पूरी स्वतंत्रता है परन्तु मानसिक परिपक्वता का अभाव होने के कारण उसे माता-पिता और गुरुजनों का सहारा लेना पड़ता है। आजकल शहर-कस्बों में करियर काउंसलिंग कार्यालय भी खुल गए हैं। इनमें कार्यरत परामर्शदाता यह बताते हैं कि बच्चे भविष्य में किस विषय और संस्थान का चुनाव कर सकते हैं।
सच तो यह है कि करियर का सही चुनाव बच्चे को ही करना होता है। आखिरकार, यह उसके जीवन का प्रश्न है। हर अभिभावक का यह दायित्व है कि वह अपने बच्चे की रुचि का आकलन कर ही कोई निर्णय लें। जो बच्चे गणित में होशियार हैं उन्हें कला व संस्कृति से सम्बद्ध विषय पढ़ाना मूर्खता होगी। इसी प्रकार कुछ बच्चे विज्ञान के नाम से ही डरते हैं ऐसे में उन्हें ऐसे विषय चुनाव को मजबूर नहीं करना चाहिए, ऐसे बच्चों को कला संकाय के विषय भा सकते हैं। आमतौर पर यह देखा गया है कि जो छात्र गणित के मेधावी होते हैं वे अन्य विषयों अंग्रेजी, हिन्दी इत्यादि में ज्यादा कुशलतापूर्वक कार्य नहीं कर पाते।
आप यदि अपने बच्चे को डॉक्टरी की पढ़ाई कराना चाहते हैं तो इस बात पर गौर करें कि उसकी भौतिकी, रसायन विज्ञान और जीव विज्ञान की तरफ रुचि है भी या नहीं। ऐसा इसलिए क्योंकि यह तीनों विषय इस करियर के आधार स्तम्भ हैं। मान लीजिए कि एक बच्चे की जीव विज्ञान में रुचि है और वह डॉक्टर बनना चाहता है परन्तु वह रसायन विज्ञान व भौतिकी विज्ञान में कमजोर है तो वह डॉक्टर नहीं बन पाएगा। हां, यह हो सकता है कि वह जीव विज्ञान में एम.एस.सी. कर ले परन्तु उसके लिए भी बी.एस.सी. करना आवश्यक है और उसमें रसायन विज्ञान, भौतिकी और जीव विज्ञान की पढ़ाई जरूरी है।
छात्र जीवन में स्नातक स्तर पर भी करियर का चुनाव करना इतना आसान नहीं है। बहुत से छात्र स्नातक शिक्षा के बाद स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त करते हैं। उनमें से कुछ तो विदेश भी जाते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त करना आवश्यक हो चुका है परन्तु उन्हीं छात्रों को ऐसी पढ़ाई करनी चाहिए जो उद्योगों व सरकारी विभागों में कार्य करने के इच्छुक हों। यदि छात्र पीएचडी करते हैं तो वे शैक्षणिक कार्यों के लिए तो उपयुक्त हो जाते हैं परन्तु औद्योगिक कम्पनियों में नौकरियां प्राप्त नहीं कर सकते। शिक्षा के क्षेत्र में छात्रों के लिए अनेक संभावनायें हैं परन्तु उनमें शिक्षण के प्रति अभिरुचि होनी जरूरी है।
निजी क्षेत्र में कार्यरत कम्पनियां अपनी मर्जी से लोगों को अपने यहां नियुक्त करती हैं। अतः युवाओं को चाहिए कि वे अपने लिए ऐसी कम्पनियों का चुनाव सोच समझकर करें। कई लोग अच्छी तनख्वाह प्राप्त करने के लिए नौकरियां बदलते रहते हैं, यह प्रवृत्ति अच्छी नहीं है। इसका कारण यह कि व्यक्ति किसी एक जगह पर टिक नहीं पाने के कारण असंतुलित हो जाता है। उसका करियर इस असंतुलन के कारण किसी भी दिशा में आगे नहीं बढ़ पाता।
कई छात्र-छात्रायें पढ़ाई पूरी करने के बाद अपना व्यवसाय चलाने की बात सोचते हैं। यह ख्याल बुरा नहीं है परन्तु इसके लिए काफी धन, बुद्धिमता और कठोर परिश्रम की आवश्यकता है। फिर भी हम यही कहेंगे कि छात्र-छात्राओं को नौकरी के पीछे भागने की बजाय स्वरोजगार में रुचि लेनी चाहिए इससे जहां देश का आर्थिक विकास होगा वहीं बेरोजगारों को भी रोजगार मिलेगा। आजकल सरकार और बैंकें युवाओं को स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं। सच कहें तो यदि कोई इंसान कठिन परिश्रम करने की ठान ले तो कोई भी मुश्किल उसे विचलित नहीं कर पाएगी। अपने मन का राज होने का मजा ही कुछ और है।